बुधवार, 15 सितंबर 2021

चंदन संत स्वभाव है! 🔸 [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

चंदन  लेकर  मैं  गया,तिलक लगाने   माथ।

लगा तिलक  उनके सुघर,महके  मेरे  हाथ।।

महके   मेरे   हाथ, किया  मैंने नत    वंदन।

पाया शुभ आशीष,खिला फूलों सा तन मन।

'शुभम'प्रीत संदेश,तभी खिलता है कन-कन।

महकाएँ  निज  देश, महकता जैसे   चंदन।।


                       -2-

चंदन - तरु  के  साथ में,है विचित्र   संयोग।

लिप्त तने से नित रहें, विषधर काले   रोग।।

विषधर काले रोग,नहीं विष तरु को  व्यापे।

देखें  नर   यह  हाल, भूल बैठें निज  आपे।।

'शुभं'यही जगरीति,विषlमृत पाते छन छन

संत न  छोड़ें त्याग, तपस्या का सत  चंदन।।


                        -3-

चंदन  संत  स्वभाव है,विष का नहीं प्रभाव।

शीतलता  सद्गन्ध  का,नित्य निरंतर  चाव।।

नित्य निरंतर चाव,कभी वह नहीं   छोड़ता।

मानव को सुख बाँट, विरत मुख नहीं मोड़ता

'शुभम'देख लें आप,घूमकर दुनिया वन-वन।

सरिता जैसा  रूप, कहा जाता  वह  चंदन।।


                         -4-

चंदन  जैसे  मनुज की,कर ले नर    पहचान।

जीता परहित के लिए,बढ़ता है  शुभ  मान।।

बढ़ता है शुभ  मान,मिटाकर अपनी  काया।

देता  मधुर सुगंध, शक्ति से सदा   सवाया।।

'शुभं'नागवत लोग,पटक मरते हैं निज फन।

देता है निज सीख, महकता शीतल चंदन।।


                        -5-

चंदन  चर्चित  कामिनी, के अंतर  का खेल।

मनुज न जाने देवता,अद्भुत अति  बेमेल।।

अद्भुत अति बेमेल, अजब सी एक  पहेली।

कभी ज़हर की बूँद, कभी है गुड़ की भेली।।

'शुभम' गूढ़ता मंजु, कभी करती है ठनगन।

जीवित यौवन- राग,कामिनी काया  चंदन।।


🪴 शुभमस्तु !

१४.०९.२०२१◆९.००पतनम मार्तण्डस्य।

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