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✍️ शब्दकार ©
💃🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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वधू नई श्वसुरालय आई।
घर -घर होने लगी बधाई।।
कुछ दिन यों ही बीते नीके।
जलने लगे दीप घर घी के।।
पत्नीव्रता नशे का मारा।
लुढ़का तिय-आँचल में पारा।
जो चाहा करने का आदी।
छँटी मगज की सारी वादी।।
आभूषण नित महँगी साड़ी।
पति पीछे तिय चली अगाड़ी।
माँ से चूल्हा अलग जलाया।
नहीं चाहिए माँ का साया।।
घर में नव दीवार बना दी।
पीहर में हो गई मुनादी।।
भाई रहा न भाई कोई।
किस्मत मात-पिता की सोई।।
हर कोने में चूल्हे जलते।
देख विधाता माथा मलते।।
क्या मैंने ही इन्हें बनाया?
देखा पर विश्वास न आया!!
माँ के पास न जाने पाता
मन ही मन पति घुलता जाता।।
वेतन सभी यहाँ पर लाओ।
सासू जी को मत बतलाओ।।
पति जी पर पत्नी का साया।
माँ-बापू को खूब छकाया।।
ब्याह हुआ वर -दान हो गया।
कलयुग में पतिमान खो गया।
छूट गया है आँचल माँ का।
'शुभम'नवोढ़ा का यह टाँका।
करके ब्याह खूब पछताया।
नवयुग की दुल्हनिया लाया।।
🪴 शुभमस्तु !
३०.०९.२०२१◆५.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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