रविवार, 12 सितंबर 2021

ग़ज़ल 🍁


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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जिसने   शमा     जलाई    है।

कर  दी   जगत - भलाई   है।।


अंधा         बाँटे       रेवड़ियाँ,

अपनी    ओर    कलाई     है।


माले -  मुफ़्त   न  दिले  रहम,

क्या   रुख़सार    ललाई    है!


मतलब    जो    पूरा   कर  दे,

निज  शुभचिंतक   भाई    है।


आग   लगाना    सरल   यहाँ,

हर    कर    दियासलाई    है ।


पैदल  को      दी    साईकिल,

बोला      चली - चलाई     है।


'शुभम'  न   बहे   पसीना भी,

चाहे     मधुर      मलाई    है।


🪴 शुभमस्तु !


१२.०९.२०२१◆११.३०आरोहणं मार्तण्डस्य।

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