झूठा पुराण बनाम जैसी बहे बयार ⛵
[ व्यंग्य ]
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●
✍️ व्यंग्यकार ©
⛵ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
अथ 'झूठा पुराणम' प्रारभ्यते ।
हमारी हिंदी में एक प्रसिद्ध कहावत है :'जैसी बहे बयार पीठ तब तैसी दीजै'।इस छोटी - सी कहावत में बड़े - बड़े सत्य छिपे हुए हैं। आज के युग में इसकी प्रासंगिकता में कई गुणा वृद्धि हुई है और निरंतर गुणात्मक रूप से अनवरत वृद्धि का स्तर ऊपर चढ़ता जा रहा है।हम जमाने के साथ कदम से कदम मिलाते हुए अग्रसर होने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं।छोड़नी भी नहीं चाहिए।
सच को कभी भी बिना सोचे समझे मत बोलिए।यदि आपके दुर्भाग्यवश आपने ऐसा कर दिया तो आपको पछताने के अतिरिक्त कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।इसलिए सच को इस प्रकार डर- डर कर बोलिए, जैसे आप कोई पाप कर्म करने जा रहे हैं। यदि किसी ने आपको सच बोलते हुए देख लिया अथवा पकड़ लिया तो कितने भी झूठ बोलकर भी आप बच नहीं सकेंगे।इसलिए धोखे से भी सच को अनायास जुबां पर मत लाइए ।
अरे!क्या आप ही अकेले सत्य हरिश्चंद्र की औलाद हैं कि आपने सच बोलने का ठेका ले रखा है? सच को तो स्वप्न के लिए भी बचा कर अपनी तिजोरी में मत रखिए। आपको यह भी अच्छी तरह से मालूम है कि राजा हरिश्चन्द्र ने ऋषि विश्वामित्र को अपना सम्पूर्ण राजपाट दान में दे दिया था। उनका वह स्वप्न भी स्वप्न नहीं रहा । सुबह होते ही वह सच साबित हो गया! औऱ राजपाट लेने के लिए सच में ऋषि विश्वामित्र जी राजदरबार के सामने उसे ग्रहण करने के लिए उपस्थित हो ही गए न? फिर क्या ! स्वप्न में किया गया वादा राजा हरिश्चन्द्र को पूरा करना पड़ा। कहाँ लोग कहते हैं कि सपने तो टूट जाने के लिए ही होते हैं। वे कभी सच नहीं होते।देखा!सपना भी सच हो गया और सच का नतीजा भी देख लिया। राजा, राजा नहीं रहे, सत्य के कारण भिखारी बन गए।क्या आप ऐसे सत्य का साथ देकर भिखारी बन जाने के लिए तैयार हैं?
इसलिए सच से सदा सावधान रहें।सच बोलना,सच को धारण करना, सचाई की सीख देना ,सचाई का अनुगमन करना : ये सब कुछ छोड़ ही दीजिए।ये सब इतिहास की बातें किताबों में पढ़ने में ही अच्छी लगती हैं। इन्हें तो इतिहास के साथ ही दफना दीजिए । पूर्व में ही कही गई कहावत को मन - मस्तिष्क में धारण कर लीजिए : 'जैसी बहे बयार.....'
आप देख,सुन और समझ रहे हैं कि झूठ का बोलबाला है। सच का मुँह काला है। अतः मित्रो ! झूठ को ही जीवन में सर्वांगीण रूप से धारण करें। उसी के सपने देखें।झूठ बोलने के लिए कुछ भी सोचने-समझने की आवश्यकता नहीं है।इसलिए धड़ल्ले से झूठ की मूठ में समा जाइए।झूठे लोगों का अनुसरण ,अनुगमन करने में ही (आपकी अपनी कल्याण की परिभाषा के अनुसार) आपका कल्याण है। जब सच रहा ही नहीं ,तो उसकी परिभाषा भी बदल गईं ।इसलिए जैसी जमाने की हवा चल रही है, उसी के साथ उड़ते रहना, चलते रहना,अनुगमन करना यही सर्वाधिक श्रेयस्कर है।
झूठ की एक विशेषता यह भी है कि एक बोलो ,सौ बोलो ,हज़ार बोलो : वह झूठ नहीं लगता। वह सच का भी परबाबा बन जाता है। वह जीवंत होकर विश्वास का बीजारोपण कर देता है। इसलिए सर्वांश में झूठ को आज भगवान मान लीजिए। इसलिए थोड़ा नहीं , जी भरकर झूठ ही झूठ बोलें। यदि विश्वास नहीं हो तो हाथ कंगन को आरसी क्या! ज्यादा दूर नहीं जाना, अपने चारों ओर खड़े नेताओं ,सियासतदानों औऱ सियासती दलों को देख लीजिए कि वे किस बेशर्मी से वे झूठ का दामन थामकर " देश का कल्याण ?" करने में लगे हुए हैं। वे जितना भी झूठ बोलते हैं ,वह जनता में सैकड़ों गुनी रौशनी फैलाता है। फिर वह मानव नहीं ,देव दूत बनाकर पचास किलो की माला से पूजा जाता है। उसकी हड्डी,माँस, रक्त ,मज्जा,त्वचा आदि के भार के बराबर तराजू में तोला जाता है। ये सब कमाल एक मात्र झूठ का ही तो है।
आज का आदमी बहुत बुद्धिमान है। वह बिना स्वार्थ के किसी के कटे हुए पर स्व- मूत्र विसर्जन भी नहीं करता। फिर आप उससे क्या आशा बनाए रखकर अपने विश्वास की मंजिल खड़ी कर सकते हैं? वह झूठ का पक्का अनुयायी बन चुका है। सारे खोंमचे, चमचे , भगौने बस झूठ की 'मधुर' खीर की हँड़िया में आकंठ निमग्न हैं। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि एक मात्र सहारा अब 'झूठ भगवान' का ही बचा है। इसलिए उनके धर्म, कर्म, व्यक्ति, समाज, उत्सव, दंगल, सर्वत्र झूठ का साम्राज्य है।नौकरी में 'अन्य आय' (इसे आप अन्याय न समझें), उत्कोच, व्यापार में मिलावट, सब कुछ झूठ की आधार -भूमि पर ही तो प्रतिष्ठित है।
झूठ के बिना हानि ही हानि है। आज झूठ , झूठों, झूठनुयायियों का युग है। सच औऱ सचाई के रास्ते पर चलकर महक दुमहले बनाना तो दूर की टेढ़ी खीर ही समझिए, आपको दो वक्त के निवाले के भी लाले पड़ जाएंगे। इसलिए यह तो मानना ही पड़ेगा :
झूठ बिना जीवन नहीं,झूठ आज भगवान।
झूठ बिना मिट जाएगी, मानव तेरी शान।।
खाना पीना पहनना, रहना सहना झूठ।
झूठ छोड़ तुमने दिया, जाए किस्मत रूठ।।
झूठ पाप होता नहीं, झूठ आज है पुण्य।
नेता जी से पूछ लें, कर देंगे अनुमन्य।।
एक नहीं दो भी नहीं, बोलें झूठ हज़ार।
मान बढ़े संसार में, देखें नित्य बहार।।
झूठे नित फल फूलते, चमके जग में नाम।
अखबारों में छप रहे,करता जगत प्रनाम।।
चलिए सबके साथ ही ,जैसी बहे बयार।
शेर बने तनकर रहें,मिलता 'शुभम' पियार।।
झूठों का अनुगमन कर ,चलें भेड़ की चाल।
देखेगा संसार सब, जब हों मालामाल।।
इति झूठा पुराणम समाप्यते।
🪴 शुभमस्तु !
२१.०९.२०२१◆६.३० पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें