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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपने पिता के बाग की,
बेटी तू नन्हीं पौध है।
रोपूँ वहाँ शुभ बाग़ में,
कर्ता लिखी जो औध है।।
फूले - फले हे आत्मजे!
मेरा सजल आशीष है।
उस वंश की विकसे लता,
जिस पर कृपामय ईश है।।
कर्तव्य अपना कर रहा,
जो है यथासम्भव मुझे।
मत भूलना माँ - जनक को,
हम भी न भूलेंगे तुझे।।
दो कुलों की ज्योति बेटी,
दो कुलों का मान तू।
वह ज्योति नित जलती रहे,
आँगन की मेरे आन तू।।
आशीष के शुभ शब्द दो,
तुझ पर निछावर कर रहा।
तेरा पिता नेहिल सुता!
क्यों अश्रु झर-झर झर बहा।।
🪴शुभमस्तु !
२३सितम्बर २०२१◆५.१५पतनम मार्तण्डस्य।
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