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समांत : आने ।
पदांत : में।
मात्रा भार:20
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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समय लगता है गरिमा बढ़ाने में।
बात बिखरती हुई को बनाने में ।।
मात्र मुखड़ा नहीं तुम सजाया करो,
वर्ष लगते हैं चरित को सजाने में।
एक यात्रा कठिन है जीवन तेरा,
सारा जीवन लगा दे तपाने में ।
संस्कारों की खेती होती नहीं,
सहस्त्र सदियाँ लगा तू निभाने में।
सुमन संग शूलों को दिया है हमें,
महक आती है तप के खजाने में ।
एक - एक क्षण जोड़ क्षणदा बनी,
मिलता है सदा सुख जाग जाने में।
मत 'शुभम' भूल जाना आचरण कभी,
जिंदगी बीतती घर बसाने में ।
🪴 शुभमस्तु !
२०.०९.२०२१◆११.०० आरोहणं मार्तण्डस्य।
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