गुरुवार, 16 सितंबर 2021

तुम्हें बता तो दूँ 🥀 [ व्यंग्य ]


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 ✍️ व्यंग्यकार © 

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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 मेरे हिंद देश वासियो! 

 हिंदी भाषा भाषियो!! 

 आज मेरा तुम सबसे संवाद बहुत आवश्यक हो गया है।तुम लोग इस भ्रम में कदापि मत रहना कि वर्ष में एक बार 'हिंदी दिवस' अथवा 'हिंदी पखवाड़ा' मना लेते हो ,तो मैं तुम्हारी बहुत बड़ी कृतज्ञ हो जाऊँगी ? बहुत अधिक प्रसन्न हो जाऊँगी ? माना कि इक्कीसवीं सदी चल रही है। तुम भी बीसवीं या इसी सदी में पैदा हुए होगे।लेकिन मेरा जन्म तुमसे कई शताब्दियों पहले हुआ है। मेरे सामने तुम अभी कच्चे हो, बच्चे हो। लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि तुम मनमानी करोगे ! और मुझे भी हास्यास्पद बना डालोगे। अन्य भाषा बहनों के बीच मेरी भद्द करा डालोगे।

              आज तुम अपनी उच्च भारतीय संस्कृति को भी भूलते जा रहे हो। माना कि युग बदल रहा है। युगानुकूल परिवर्तन भी होते हैं , होते रहे हैं और होते भी रहेंगे।लेकिन क्या एक प्रश्न का उत्तर तुम मुझे दे सकते हो? क्या युग और समय बदलने पर तुमने अपने माँ - बाप को भी बदल लिया है ? किसी अन्य को यह मान्यता प्रदान कर दी है? तुम कहोगे कि 'ऐसा कैसे हो सकता है ! भला माँ - बाप भी बदले जाते हैं ? ' जब माँ-बाप नहीं बदले जाते तो क्या तुम्हारी माँ जैसी माँ की बोली , माँ की भाषा ;जिसे तुम मातृभाषा ! मातृभाषा !! कहते हुए ,उसके गीत गाते हुए ,उसकी प्रशंसा में कसीदे काढ़ते हुए नहीं अघाते , उसका पीठ पीछे क्या सामने भी जी भरकर अपमान करते हुए भी नहीं लाज आती ?

               अब तुम्हारा उत्तर यही होगा कि 'हमने ऐसा क्या किया है कि आपका इतना अपमान हुआ है?' तो मेरी वेदना भी सुनो। तुमने अपने कपड़े बदले। धोती, कुर्ता, पायजामा, कमीज़, साड़ी, सूट ,सलवार में आ गए। तुम सुविधाभोगी हो न ? जिसमें सुविधा लगी ,वही बिना सोचे - समझे पहन डाला,कर डाला । वाहवाही लूटने को गले में डाल ली माला।भले ही संस्कारों का निकल जाए दिवाला।माँ - बाप चीखते -चिल्लाते रहे। तुम बहरे बने गुल खिलाते रहे।तुम्हें देख - देख कर तुम्हारे ही कुछ माँ-बाप भी तुम्हारे ही रँग में रँग गए।तुम पश्चिम के अंधे अनुकरण में टाइट जींस, टॉप, स्कर्ट , लहँगे की बहन और पायजामे की उतरन पिलाजो, लैगी,फ़टी ,उधड़ी, चिथड़ी जींस और न जाने क्या -क्या ले आए? इसी प्रकार खान -पान और रहन - सहन में भी क्या से क्या बन गए ? पर क्या तुम्हें अपनी माँ समान हिंदी को नग्न करने में भी तुम्हारी आँखें लज्जा से झुक नहीं सकीं? मेरे भी वस्त्र उतार दिए ,औऱ बिना सिर की रोमन भाषा के कपड़े मुझे बलात लाद दिए! जिसके लिए मैं न तैयार थी , न हूँ और न रहूँगी। क्या मैं निर्वसना थी,जो रोमन- वसन से लज्जित कर रहे हो ? मेरी भी अपनी एक वेशभूषा है ।जिसे नहीं जानते हो तो बतला भी दूँ? उसका नाम है देवनागरी । जी हाँ, देवनागरी। 

            जहाँ तक पीछे जाकर विचार करती हूँ तो मुझे प्रतीत होता है कि पर्दे पर नंगा नाच करने वाले अभिनेता , अभिनेत्रियां, उनके निर्देशक , निर्माता, विज्ञापन कर्ता - यही सब लोग दोषी हैं। क्योंकि वे अंग्रेज़ी में अंग्रेज़ी से हिंदी सिखा सकते हैं, पढ़ा सकते हैं।अब उनकी नकल में , क्योंकि वे ही तो तुम्हारे आज के आदर्श पुरुष औऱ महा नारियाँ हैं। उन्हीं से खिलतीं तुम्हारे हृदय की क्यारियाँ हैं! ये तो तुम निश्चित करो कि तुम भेड़ हो अथवा बकरियाँ हो ! 

                  आप में से अधिकांश ने देवनागरी को खूँटी पर टाँगकर रोमन की स्कर्ट पहना दी है।    'लघुकाट' के लालचियो! अब न रही हिंदी औऱ तुम्हारे द्वारा मार डाली गई देवनागरी भी देवलोक को विदा कर दी गई ! अंततः मेरी हत्या क्यों कर रहे हो। हिंदी दिवस पर 'हिंदी डे' मनाते हो, झूठी औऱ खोखली औपचारिकता निभाते हो और माँ को छोड़ फ़िरंगिनि मौसी की देह सहलाते हो! मुझे सरेआम नंगा कर रोमन - वसन पहनाते हो। हिंदी सीखने, पढ़ने, लिखने में नाक कटती है न तुम्हारी! इसलिए हिंदी का सभा- चिंघाड़ू भाषण करने वाला भीषण वक्ता अपने बच्चों को कॉन्वेंट में पढ़वाता है। हिंदी- भाषी पिछड़ा कहलाता है! क्यों न तुम जैसों को भाषाद्रोही कहा जाए? भाषाद्रोह भी देशद्रोह से कम नहीं है। 

          सही अर्थों में देखा जाए तो तुम्हें न हिंदी आती है और न कोई अन्य अंग्रेज़ी ,संस्कृत ,उर्दू आदि ही। खिचड़ी आती है। हिंग्लिश से शान बढ़ जाती है । दिखावा करने में कुशल हो न! बस इसी दिखावे में वाह वाही लूटना ही तुम्हारा उद्देश्य है।न घोड़े बन पाए और न गधे ही ,खच्चर बने रह गए। गंगा में कितना जल निकल चुका ,कितने खच्चर बह भी गए! अधकचरा ज्ञान सदैव घातक ही होता है। अपने पैरों में अपने आप ही कुल्हाड़ी मार रहे हो ,तो शौक से मारो। फिर मत कहना कि बताया नहीं था। मैं हिंदी ,तुम्हारी माँ की वाणी ;तुमसे ,अपनी ही संतति से तनिक भी प्रसन्न नहीं हूँ। मेरा ,अपनी मातृभाषा हिंदी का गला ही घोंटते चले जा रहे हो। कॉन्वेंट के बच्चों के माँ-बाप उस समय कितनी बेशरमी से मुस्कराते हुए गर्व से सीना फुला लेते हैं ,जब उनका बच्चा कहता है , हिंदी गिनती नहीं आती ,अंग्रेज़ी की पूरी आती है। 'आई कैन स्पीक इन इंग्लिश'. अरे बेशर्मों! चुल्लू भर .........में डूब कर मर क्यों नहीं जाते ! अपने को कहते हो हिंदुस्तानी! हिन्दू , हिंदी ! और गुलाम हो फ़िरंगिनि के ! क्या यही सनातन संस्कृति है ? यही तुम्हारा सनातन वैदिक धर्म है? 'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार' गाने/ रटने वाला बच्चा क्या संस्कार देगा? हे हिंद देश के वासियो ! तुम्हें धिक्कारने के अतिरिक्त मेरे पास कोई दूसरा शब्द नहीं है।

          देश के दुर्भाग्य या उसके अपने सौभाग्य से यदि थोड़ी बहुत फ़िरंगिनि भाषा सीख भी ली ,तो मोबाइल पर संदेश लिखने में हिंदी तो भूल ही जाता है। वह या तो हिंदी कुंजी पटल को कठिन बताकर या अंग्रेज़ी का रॉब मित्रों में मारने के लिए YOU को 'U' ,QUE को 'Q', है को H, हैं को HE, FOR को 4, साथ को '7', तेरह को '13', बारह को '12' लिखने लगता है। ये किस भाषा का जन्म हो रहा है, समय ही बताएगा। 

                इतना अवश्य है कि पतन इसी तरह होता है। ये सब पतन के लक्षण हैं।चाहे वस्तु हो या व्यक्ति ; ऊपर उठने में समय लगता है , गिरने में न्यूनतम समय ही लगता है। जैसे पूत के पाँव पालने से बाहर निकल जाते हैं, वैसे ही पूत - पूतनियों (पूतनाओं न समझें) के पाँव तो पालक औऱ पालने को लतिया - लतिया कर तोड़-फोड़ डालने में ही दिख रहे हैं। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा हुआ है , भविष्य ही भविष्य में उसका भविष्य बताएगा । 

 🪴 शुभमस्तु ! 

 १६.०९.२०२१.◆१.४५ पतनम मार्तण्डस्य। 

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