सोमवार, 20 सितंबर 2021

माँ 🧕🏻 [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                       -1-

माँ  की  ममता- मापनी,बनी नहीं  भू  मंच।

संतति का शुभ चाहती,नहीं स्वार्थ हिय रंच

नहीं स्वार्थ हिय रंच,सुलाती शिशु को सुख से

गीले  में सो  आप,भले काटे निशि दुख से।।

'शुभं'न उपमा एक,नहीं माँ सी जग झाँकी।

जनक पिता का त्याग,श्रेष्ठतम ममता माँ की


                       -2-

जननी  माँ प्रभु रूप हैं,धीर नेह  का   धाम।

सदा बचाती शीत से,लगे न अतिशय घाम।।

लगे न अतिशय घाम,सँवारे संतति  अपनी।

सबसे  प्रिय संतान,एक ही माला   जपनी।।

'शुभम'दया संचार,किया करती दुख हरनी।

संस्कार  भांडार, मात  मेरी  माँ     जननी।।


                       -3-

आया  सुत  घर लौटकर, बाहर से  कर देर।

माँ  ने  पूछी   कुशलता,  कैसे हुई    अबेर।।

कैसे   हुई   अबेर,  बहुत  तू भूखा    होगा।

कर ले भोजन पूत,कहाँ भीगा तव    चोगा।।

'शुभम' बदल परिधान,नहीं मैंने कुछ खाया।

मिली मुझे अब शांति, पूत मेरा घर आया।।


                       -4-

देती  जननी  जन्म  जो, पालनहारी  मात।

देता है यदि कष्ट सुत,सँग उसके अपघात।।

सँग उसके अपघात, झेलता सौ-सौ  रौरव।

बनता काला  कीट, नसाता अपना  सौरव।।

'शुभम' सदा ही मात,अंडवत संतति  सेती।

पहुँचाए बिन घात,जननि माँ सुख ही देती।।


                        -5-

माता जननी  धाय का,उऋण नहीं  है नेह।

बिना लिए  प्रतिदान वह,बरसाती नित मेह।।

बरसाती नित मेह,महकती जीवन - क्यारी।

खिलते सुमन अपार, अजब है माता  नारी।।

'शुभम'न बनें कपूत,सदा माँ को जो ध्याता।

हर लेती हर  दाह,पूजता जो निज  माता।।


🪴 शुभमस्तु !


२०.०९.२०२१◆३.००पतनम मार्तण्डस्य।


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