गुरुवार, 16 सितंबर 2021

कवियों का देश 🛋️ [ गीतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

👑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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यदि    कवियों   का  देश धरा पर   होता।

एक   अकिंचन   ये   भी  उनमें   होता।।


कुछ   कहते  मैं   बड़ा सभी से  कविवर,

दो    पाटों   के    बीच  पिसा   मैं   होता ।


मीन  - मेख    में  लगे   सभी कवि   होते,

कविता    सोती    तान  यही सब   होता।


कवियों   की   भरमार   ग़ज़ब ही    ढाती,

लठामार     होली     का   हुल्लड़   होता।


कौन    समीक्षा    करता किसकी  रचना,

स्वयं   शीश   पर   पगड़ी कसता  होता।


अलंकार ,   रस,   छंद    कौन बतलाता,

करे      वर्तनी      शुद्ध     न कोई    होता।


इसका    झोंटा     उसके   कर  महकाता,

दृश्य     देखने   योग्य   सभा का    होता।


दर्पण   सम्मुख     खड़ा सुनाता   कविता,

बंद   कक्ष    में   गीत    गा  रहा     होता।


खुजली    का   उपचार जीभ की   करता,

एक      अकेले     का   सम्मेलन     होता।


छपवा      पत्र   प्रमाण    टाँगता   घर    में,

लेता     शॉल    ख़रीद   महाकवि    होता।


एकल      हेकड़  -   मंच    सजाए   जाते,

'शुभम' पीठ निज थपक  सुकवि वह होता।


🪴 शुभमस्तु !


१६.०९.२०२१◆७.३० पतनम मार्तण्डस्य।

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