रविवार, 26 सितंबर 2021

ग़ज़ल 🔔

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नजरों  का   संसार  निराला।

तेरा -  मेरा    प्यार   निराला।


नजरों  में  नफ़रत  का दरिया,

मिलता  भी   उपहार निराला।


नयन -झील  में  डूब गया जो,

पा उर   का  इतवार  निराला।


धोखा,छल,फ़रेब  की दुनिया,

फूलों  में   भी   खार निराला।


बिना साँस  के क्या जीवन है,

साँसों  का    व्यापार  निराला।


काम  - भाव   से मानव  आया ,

कितना   मारक     मार निराला।


'शुभम'   छिपाता   है  परदे में,

सभ्य   हुआ    व्यवहार निराला।


🪴 शुभमस्तु !


२६.०९.२०२१◆२.००पतनम मार्तण्डस्य।

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