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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नजरों का संसार निराला।
तेरा - मेरा प्यार निराला।
नजरों में नफ़रत का दरिया,
मिलता भी उपहार निराला।
नयन -झील में डूब गया जो,
पा उर का इतवार निराला।
धोखा,छल,फ़रेब की दुनिया,
फूलों में भी खार निराला।
बिना साँस के क्या जीवन है,
साँसों का व्यापार निराला।
काम - भाव से मानव आया ,
कितना मारक मार निराला।
'शुभम' छिपाता है परदे में,
सभ्य हुआ व्यवहार निराला।
🪴 शुभमस्तु !
२६.०९.२०२१◆२.००पतनम मार्तण्डस्य।
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