गुरुवार, 30 सितंबर 2021

पितर - चिंतन 🍑 [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🍑 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम' 

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                        -1-

सेवा जीवित  की करे, संतति है  वह  धन्य।

मान नहीं पितु-मात का,कहते उसको वन्य।

कहते उसको  वन्य, नरकगामी  वह   होता।

करता जो अपमान,भाग्य भी उसका सोता।।

'शुभम'  पिता  ही देव, पूज्य माता  की मेवा।

मिलती है शत यौनि, करे जो उनकी सेवा।।


                        -2-

मिलता है आशीष शुभ,निज पितरों का मीत

जीते जी जो  मान दे,  होती उसकी  जीत।।

होती  उसकी जीत,पार  करता  भवसागर।

यश की मिलती माल,नाम की प्रभा उजागर।

'शुभं'मुकुलआंनद,सदा शोभित हो खिलता।

पद सेवी पितु मात, हजारों में ही मिलता।।


                        -3-

अपने तन को त्यागकर,जाते जन उस लोक

पितर लोक के वास से, परिजन करते शोक।

परिजन करते  शोक,उन्हें निज  श्रद्धा  देते।

तर्पण कर  तिल नीर,धीर मन में  धर  लेते।।

'शुभं'सूक्ष्म तव देह,दिखाती निशि में  सपने।

शांति शांति हो शांति,पिता माता जो अपने।।


                        -4-

जैसा  बोया   कर्म का,मानव तुमने    बीज।

पौधा  भी  वैसा  उगे,औऱ न कोई    चीज।।

औऱ न कोई चीज,लिखा पल- पल का लेखा

इसी  धरा  पर  फूल, फूलता हमने   देखा।।

'शुभम'  न होती भूल,साथ में गया न   पैसा।

फलता मानव कर्म, वपन जो करता जैसा।।


                        -5-

कहते कन्या-दान  सब,पर होता वर - दान।

मानें  या  मानें  नहीं,यही सत्य  लें  जान।।

यही सत्य  लें  जान, दान करती  है  माता।

नई  बहू  ले  पूत,  बनी  है जननी   दाता।।

'शुभम' मुझे है ज्ञात,पुत्र अपने कब  रहते।

भरती जब निज बाँह,वधू सब ऐसा कहते।।


🪴 शुभमस्तु !


३०.०९.२०२१◆४.३० पत नम मार्तण्डस्य।

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