रविवार, 12 सितंबर 2021

बोध - अंजलि 🏺 [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार ©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जन्मी मध्य तनाव के, मानव की शुभ देह।

प्राण अंतरण हो गया,अनजाने जन-गेह।।


शिशु- वय में स्वच्छन्द हो,पाया  सर्वानंद।

रूप  हुआ भगवान का,लिखे नेह के छंद।।


ज्यों-ज्यों वय बढ़ती गई,बढ़ते रहे  तनाव।

शिक्षालय में जब गया,लगा बदलने  भाव।।


वय किशोर में नारि- नर,खेले- कूदे  ख़ूब।

मीत मिले मुस्कान-से,जमी प्यार की दूब।।


शिक्षा भी   पूरी  हुई, यौवन करता   खेल।

दो तन-मन जब से मिले,बढ़ी वंश की बेल।


धन अर्जित  करने लगा,फैला विस्तृत जाल।

बढ़ते  नित्य  तनाव  भी,होता माला-माल।।


दायित्वों  के  भार से,दबता विविध प्रकार।

कभी जीत दिखती उसे,कभी दीखती हार।।


जिसे न निज दायित्व का,तनिक नहीं है बोध

पशुवत नर विचरण करे, करके देखा शोध।।


मात-पिता गुरु का कभी,किया नहीं सम्मान।

शूकरवत वह मनुज है,कभी न बढ़ती शान।।


मात-पिता गुरु,ईश के,माने जो प्रतिरूप।।

रौरव में गिरता नहीं,'शुभम' उसे भवकूप।।


मात-पिता गुरुमान का,जिसे नहीं है ध्यान।

मिट जाता है अवनि से,उसका नाम निशान।


🪴 शुभमस्तु !


१२.०९.२०२१◆१०.००आरोहणम मार्तण्डस्य।


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