बुधवार, 22 सितंबर 2021

पत्थर के प्रभु 🛕 [ बालगीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🛕 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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पत्थर के प्रभु अगर न होते।

तुमसे हम   बतियाते  होते।।


मंदिर में  जब   हम  जाते हैं।

बात  न अपनी कह  पाते हैं।।

दिखे  न हमको  हँसते- रोते।

पत्थर के प्रभु अगर न होते।।


भोग  नहीं   तुम  थोड़ा खाते।

फिर भी तुम प्रसाद खिलवाते।

पता नहीं  कब जगते - सोते।

पत्थर के प्रभु अगर न होते।।


मूर्तिकार   ने   तुम्हें   बनाया।

लोगों ने फिर   खूब सजाया।।

स्नान   कराते   दे - दे    गोते।

पत्थर के प्रभु अगर न होते।।


वसन रजत- भूषण  पहनाते।

इत्र  लगाकर  भी   महकाते।।

बजते घंटे    ले -  ले    झोंटे।

पत्थर के प्रभु अगर न होते।।


धूप दीप की ज्योति जलाकर।

करते हम  आरती   उजागर।।

'शुभं' न खुश फिर भी तुम होते।

पत्थर के प्रभु  अगर न होते।।


🪴 शुभमस्तु !


२२.०९.२०२१◆६.१५पतनम मार्तण्डस्य।


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