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✍️ शब्दकार ©
🛕 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पत्थर के प्रभु अगर न होते।
तुमसे हम बतियाते होते।।
मंदिर में जब हम जाते हैं।
बात न अपनी कह पाते हैं।।
दिखे न हमको हँसते- रोते।
पत्थर के प्रभु अगर न होते।।
भोग नहीं तुम थोड़ा खाते।
फिर भी तुम प्रसाद खिलवाते।
पता नहीं कब जगते - सोते।
पत्थर के प्रभु अगर न होते।।
मूर्तिकार ने तुम्हें बनाया।
लोगों ने फिर खूब सजाया।।
स्नान कराते दे - दे गोते।
पत्थर के प्रभु अगर न होते।।
वसन रजत- भूषण पहनाते।
इत्र लगाकर भी महकाते।।
बजते घंटे ले - ले झोंटे।
पत्थर के प्रभु अगर न होते।।
धूप दीप की ज्योति जलाकर।
करते हम आरती उजागर।।
'शुभं' न खुश फिर भी तुम होते।
पत्थर के प्रभु अगर न होते।।
🪴 शुभमस्तु !
२२.०९.२०२१◆६.१५पतनम मार्तण्डस्य।
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