समान्त : इत।
पदांत: है।
मात्रा भार: १६
मात्रा पतन:नहीं है।
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✍️ शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कर्मठता में सबका हित है।
किसे नहीं यह बात विदित है।।
कामचोर वह जन होते हैं ,
पर धन हरने में ही चित है।
बिना स्वार्थ वह देता रहता,
मिलता उसको सब कुछ नित है।
वे बालक क्या पढ़ पाएँगे,
जिनका इधर - उधर ही चित है।
नेता जी का उर है काला,
पहने तन पर कपड़ा सित है।
सेवक बनते वे जनता के,
आँगन उनका विशद अमित है।
'शुभम' सहजता में वह जीता,
जीवन शोभनीय नित ऋत है।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०९.२०२१◆१०.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।
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