मंगलवार, 21 सितंबर 2021

स्वेद बहाकर पेट पालता 🌾 [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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स्वेद  बहाकर   पेट    पालता,

रिक्शा    भले     चलाता   है।

एक   पैर    से   आगे   बढ़ता,

दंड  -   सहारा     पाता    है।।


चोरी  करता  नहीं  किसी की,

अपने  श्रम का    संबल    है।

दिन भर  सड़क नापता लंबी,

चलती -फिरती वह  कल है।।

यद्यपि पद  के बिना जी रहा,

तनिक    नहीं   घबराता   है।

स्वेद   बहाकर   पेट  पालता,

रिक्शा    भले   चलाता   है।।


भावी  को    देखा   है किसने,

कब  किसके सँग  क्या होना।

वज्र  गिरे यदि मानव तन पर,

पड़ता  जीवन   भर    रोना।।

चोंच -  चोंच  को दाना  देता,

सबका     एक  विधाता   है।

स्वेद  बहाकर   पेट   पालता,

रिक्शा   भले  चलाता    है।।


अपने  इस तन  मन  से मित्रो,

कष्ट   किसी  को    मत  देना।

सदा  गरीबों  का  हित करना,

आह  किसी   की  मत लेना।।

बुरी  आह  से  सार  भस्म हो,

सब   स्वाहा   हो   जाता   है।

स्वेद   बहाकर   पेट  पालता,

रिक्शा   भले    चलाता   है।।


हो  सकती  विकलांग देह तो,

आत्मा   सदा   अखंडित   है।

अजर -अमर अविनाशी होती,

युग -  युग महिमामंडित  है।।

है   अज्ञान  मूढ़    तू   मानव,

तन   को   देख   घिनाता  है?

स्वेद  बहाकर    पेट  पालता,

रिक्शा   भले    चलाता   है।।


आएँ   'शुभम'  बढ़ाएँ  अपने,

दोनों   कर     भर   अलिंगन।

हर गरीब के सत  सहाय बन,

यथाशक्य निज तन मन धन।

अपने  को   मत   माने  कर्ता,

कर्ता   प्रभु    कहलाता    है।

स्वेद  बहाकर   पेट  पालता,

रिक्शा    भले   चलाता   है।।


🪴शुभमस्तु !


२१.०९.२०२१◆९.३०आरोहणं मार्तण्डस्य।

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