शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

चूड़ियों की खनक पावन 🌉 [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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चूड़ियों   की  खनक  पावन,

पायलों  की   झनक झाँझन,

छा रही है।

देह     के      वातायनों    से,

चाँदनी   सुरभित   घनों   से,

आ  रही है।।


कमल-दल सज्जित ऋचा सी

भोर   की   पावन    प्रभा सी,

झाँकती  हो।

आगमन   से    पूर्व   सजनी,

पोंछ  कर  से  श्याम  रजनी,

आँकती  हो।।

भंगिमा      कैसी     निराली,

चाँद  से    तुमने      चुरा ली,

भा  रही है।

चूड़ियों  की   खनक   पावन,

पायलों  की   झनक  झाँझन,

छा  रही  है।।


एड़ियों  में   शुभ   अलक्तक,

रजत में नव   जड़ित मुक्तक,

तारकों  से।

कदलि के  तरु- थंभ दो  - दो,

चल   रहे    स्फूर्त    हो -  हो,

सारकों  से।।

आम्र   की  नव   गंध  मादक,

खींचती सी   सोम     धारक,

 भा रही  है।

चूड़ियों   की   खनक   पावन,

पायलों   की  झनक   झाँझन,

छा  रही है।।


क्षीण   कटि   कामायनी  सी,

पृष्ठ   गुरुतर    करधनी   की,

रंगशाला।

नाभि -निधि में क्या छिपा है,

दृष्टि   में   कितना   दिखा है,

गुप्तहाला।।

दृष्टि  पयधर   के  युगल  पर,

छा गई   है   भ्रमर बन   कर,

आ रही है।

चूड़ियों   की   खनक  पावन,

पायलों  की  झनक   झाँझन,

छा रही है।।


रूप   उज्ज्वल   साधना  सा,

मन   करे     आराधना   का ,

क्या  बताएँ।

नयन,मुख ,कच की न समता,

नव   कपोलों    में   सुभगता,

क्या  जताएँ।।

धड़कनें    छिपती   नहीं  हैं,

देह   मेरी    में     कहीं    हैं,

गा  रही  हैं।

चूड़ियों  की  खनक  पावन,

पायलों की  झनक  झाँझन,

छा  रही है।।


परस  की  उर -  कामना है,

रसवती      संभावना     है,

पास   आओ।

उष्ण     आलिंगन    समाएँ,

देह  दो    इक   प्राण   पाएँ,

रुक न जाओ।।

'शुभम' चुम्बक   साधना की,

प्रीतिं   की    आराधना   की,

भा  रही है।।


🪴 शुभमस्तु !


१७.०९.२०२१◆१.००पतनम मार्तण्डस्य।

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