मंगलवार, 21 सितंबर 2021

सियासी दाँव 🎺 [ मुक्तक ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🎺 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                       -1-

घिरे   हैं   मेघ     अंबर   में गरजते,

रँग बदलते गेरुआ  रक्तिम सुलगते,

सभी की चाह  है ढँकना  धरा को,

सियासी दाँव से पल -पल सरकते।


                       -2-

लटकी जलेबी रसभरी मीठी गरम है,

मतमंगताओं  को  लुभाती है नरम है,

करतूत इनकी जानती है ख़ूब जनता,

सियासी दाँव में नेता सभी बेशरम हैं।


                       -3-

सियासी    दाँव   जनता  पर चलाते,

गोलियाँ   मीठी     खिलाकर लुभाते,

पट्टियाँ पहले बँधी जिनके नयन पर,

जिता मतदान से   जन बिलबिलाते।


                        -4-

चाल  को  ही  दाँव  कहता है जमाना,

सियासी   दाँव   का   मत  है  बहाना,

दाँव में क्या  झूठ  क्या  सत 'शुभम' है,

नीर   हो   या   पंक   उनको नहाना।


                       -5-

सियासी  दाँव  है छल- छद्म भारी,

मत  समझना  नीर  में  पद्म क्यारी,

बाद  खाने   के  पता,  धोखा लगा  ,

कौन  कम है पुरुष या सलज नारी।


🪴 शुभमस्तु !


२१.०९.२०२१◆११.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

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