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✍️ शब्दकार ©
🎺 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
घिरे हैं मेघ अंबर में गरजते,
रँग बदलते गेरुआ रक्तिम सुलगते,
सभी की चाह है ढँकना धरा को,
सियासी दाँव से पल -पल सरकते।
-2-
लटकी जलेबी रसभरी मीठी गरम है,
मतमंगताओं को लुभाती है नरम है,
करतूत इनकी जानती है ख़ूब जनता,
सियासी दाँव में नेता सभी बेशरम हैं।
-3-
सियासी दाँव जनता पर चलाते,
गोलियाँ मीठी खिलाकर लुभाते,
पट्टियाँ पहले बँधी जिनके नयन पर,
जिता मतदान से जन बिलबिलाते।
-4-
चाल को ही दाँव कहता है जमाना,
सियासी दाँव का मत है बहाना,
दाँव में क्या झूठ क्या सत 'शुभम' है,
नीर हो या पंक उनको नहाना।
-5-
सियासी दाँव है छल- छद्म भारी,
मत समझना नीर में पद्म क्यारी,
बाद खाने के पता, धोखा लगा ,
कौन कम है पुरुष या सलज नारी।
🪴 शुभमस्तु !
२१.०९.२०२१◆११.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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