मंगलवार, 28 सितंबर 2021

वृक्षालाप 🌳 [ बालगीत ]

  

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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हम  सब   तरु    गूँगे      होते    हैं।

कटने   पर    हम    भी   रोते    हैं।।


अपने    सुत   की    तरह पालते।

मतलब   हो    तो   चीर  डालते।।

पौध    लगाते,    क्यों   बोते   हैं?

हम  सब    तरु    गूँगे   होते  हैं।।


पाला    -  पोसा      हमको सींचा।

हत्या     कर      दिखलाते नीचा।।  

हम   भी   जगते    या   सोते  हैं।

हम    सब     तरु   गूँगे  होते  हैं।।


फूल    और     फ़ल    हमसे लेते।

पाँचों   अपने       अँग    भी देते।।

रहते    पंछी      पिक     तोते   हैं।

हम   सब     तरु    गूँगे   होते   हैं।।


लकड़ी    काम     हमारी  आती।

पलने  से    मरघट   तक जाती।।

गाड़ी   में     भर  - भर   ढोते   हैं।

हम   सब     तरु    गूँगे   होते   हैं।।


हम   पेड़ों     से  मानव  -  जीवन।

बनते    सुंदर    खेत ,  बाग़, मन।।

'शुभम'     हर्ष - मुक्ता    पोते  हैं।

हम    सब    तरु    गूँगे  होते हैं।।


🪴 शुभमस्तु !


२८.०९.२०२१◆१०

१५ पतनम मार्तण्डस्य।

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