शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

कच्छाधारी' के खेल 🐸 [ दोहा - गीतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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'कच्छाधारी' खेलते,  बड़े - बड़े  नित खेल।

रिश्तेदारों   को   बिके, बीमा, पटरी, रेल।।


आओ  बोली लग रही, नीलामी  का   शोर,

आम सदा चुसता रहा,निकला उसका तेल।


दिखा  रहे  वे नंगपन,  बदलें 'कच्छा' चार,

आँख  तरेरें   वक्र  वे,  करवा देंगे    जेल।


सीधे -  सीधे  सब  बनें, भक्त हमारे   आप,

रह न  सकोगे  चैन  से,किया नहीं 'गर  मेल।


'कच्छा'  काछो  रंग  का, पहना  हमने  देख,

रँग  बदला  जो  दूसरा, नहीं सकोगे   झेल।


अपने  घर  को  आग दे, चलो हमारे   साथ,

महलों  में देंगे  बिठा,  निज हाथों से  ठेल।


'कच्छाधारी' कह  रहा, सुन लें देकर  ध्यान,

'शुभम' यही  उपदेश  है,बन सोने  का  ढेल। 


🪴 शुभमस्तु !

०३.०९.२०२१◆४.४५ पतनम मार्तण्डस्य।

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