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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
जीव तत्त्व ही जीवन का आधार यहाँ,
जहाँ नहीं है जीव सभी निस्सार वहाँ,
'शुभम' जीव की रक्षा तन का धर्म सदा,
मृतक देह में कृमियों का संसार जहाँ ।
-2-
करें न जीवन नष्ट मनुज अनमोल है,
रहें व्यसन से दूर 'शुभम' सत बोल है,
मानव को मानव से ऊपर है उठना,
'पूजा है सत्कर्म' न इसमें झोल है।
-3-
भर लेते हैं पेट कीट, पशु, श्वान भी,
भोग यौनि भी नहीं मनुज की देह कभी,
सत्कर्मों से मानव को देवत्व मिले,
जीवन का तव लक्ष्य न शोषण जान अभी।
-4-
जीवन लेने - देने का अधिकार नहीं,
बनता क्यों हैवान 'शुभम' स्वीकार नहीं,
चूहे को भी प्राण नहीं दे सकता तू,
प्रभु के सर्व अधीन नहीं इंकार कहीं।
-5-
जीवन की बगिया के सुमन महकते हैं,
सत्कर्मों के विटप धरा पर लगते हैं,
बोया बीज बबूल शूल ही हैं चुभने,
'शुभम' न मिलती यौनि मनुज बन उगते हैं।
🪴 शुभमस्तु !
०७.०९.२०२१◆९.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।
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