बुधवार, 8 सितंबर 2021

जीवन 🪴 [ मुक्तक ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

जीव  तत्त्व   ही जीवन का आधार   यहाँ,

जहाँ  नहीं  है जीव   सभी निस्सार  वहाँ,

'शुभम' जीव  की रक्षा तन का  धर्म  सदा,

मृतक  देह में  कृमियों  का संसार जहाँ ।


                        -2-

करें  न  जीवन   नष्ट    मनुज अनमोल है,

 रहें  व्यसन  से दूर   'शुभम' सत  बोल  है,

मानव  को   मानव  से   ऊपर है  उठना,

'पूजा   है  सत्कर्म'   न   इसमें झोल    है।


                        -3-

भर  लेते   हैं    पेट   कीट, पशु, श्वान   भी,

भोग  यौनि  भी नहीं  मनुज की  देह   कभी, 

सत्कर्मों    से    मानव    को देवत्व    मिले,

जीवन का तव लक्ष्य न शोषण जान अभी।


                        -4-

जीवन   लेने -  देने   का अधिकार    नहीं,

बनता  क्यों  हैवान 'शुभम' स्वीकार  नहीं,

चूहे  को   भी  प्राण   नहीं  दे सकता   तू,

प्रभु  के  सर्व  अधीन  नहीं इंकार   कहीं।


                        -5-

जीवन  की  बगिया  के सुमन महकते   हैं,

सत्कर्मों  के  विटप   धरा  पर लगते     हैं,

बोया   बीज     बबूल  शूल ही हैं     चुभने,

'शुभम' न मिलती यौनि मनुज बन उगते हैं।


🪴 शुभमस्तु !


०७.०९.२०२१◆९.३० आरोहणम मार्तण्डस्य। 

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