गुरुवार, 30 सितंबर 2021

सूख गया आँखों का पानी!💦 [ गीत ]


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✍️ शब्दकार©

💦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सूख  गया  आँखों  का  पानी,

फिर   प्यासे   क्यों  रोते  हो ?

कीकर  शूल बो   रहे    भू पर,

मनुज  दुखी   क्यों होते  हो!!


जल -  दोहन  कर रहे धरा से,

बहता     नाले  -     नाली  में।

सूख    रही   अमराई    सारी,

नीर नहीं    तरु - डाली   में।।

बहती  धार  भैंस   के  ऊपर,

पड़े  खाट   पर   सोते    हो।

सूख  गया आँखों  का पानी,

फिर क्यों   प्यासे   रोते हो!!


छिड़क रहे नित जहर रसायन,

स्रोत   प्रदूषित    कर    डाले।

पैदावार   बढ़ाने     के    हित,

घोंप    रहे   तन   में    भाले।।

काट-काट  कर  हरे पेड़ नित,

भर -भर   गाड़ी    ढोते    हो।

सूख  गया  आँखों  का पानी,

फिर   प्यासे    क्यों  रोते हो!!


हरियाली का  नाशक  मानव,

कंकरीट    के      जंगल    में।

एकाकी   उदास   फिरता   है,

जूझ रहा   जन   दंगल    में।।

पादप बिना नहीं   हैं   बादल,

अब क्यों   नयन  भिगोते हो?

सूख  गया आँखों  का  पानी,

फिर प्यासे  क्यों   रोते   हो!!


वर्षा  बिना   गया    है    नीचे,

जल   का   स्तर    धरती   में।

अंबर  में  क्या   ताक  रहे हो,

देखो    जाकर     परती   में।।

देह फटी    धरती   माता की,

देखें     कैसे       बोते     हो !

सूख गया  आँखों  का पानी,

फिर  प्यासे   क्यों   रोते हो!!


धरती प्यासी ,  सरिता प्यासी,

प्यासे    पादप, वन,  उपवन।

मोर,पपीहा , हिरन , शेर  भी,

पानी बिना सून जन -  जन।।

'शुभम' झाँक ले पहले भीतर,

लेते   रज   में     गोते     हो।

सूख  गया आँखों का  पानी,

फिर  प्यासे  क्यों    रोते हो!!


🪴शुभमस्तु !


३०.०९.२०२१◆११.४५

आरोहणं मार्तण्डस्य।

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