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✍️ शब्दकार ©
📱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मोबाइल के हम मतवाले।
खेल खेलते नित्य निराले।।
नहीं खेलते गुब्बारों से।
हमें प्यार है नभ तारों से।।
आज नहीं हम भोले - भाले।
खेल खेलते नित्य निराले।।
'आँखमिचौनी' 'गुल्ली -डंडा'।
नहीं रहे वे पिछले फंडा।।
'हरियल डंडे' पर हैं ताले।
खेल खेलते नित्य निराले।।
बचा नहीं कुछ कंप्यूटर से।
दूर पुरानी हर टर- टर से।।
लगते वे मकड़ी के जाले।
खेल खेलते नित्य निराले।।
'कंचा गोली' या 'नौ गोटी'।
'गुट कंकड़' की बातें छोटी।।
हमने नहीं रोग वे पाले।
खेल खेलते नित्य निराले।।
बदल गया है आज जमाना।
खेल न कोई बचा पुराना।।
'शुभम'गए दिन 'गुच्ची' वाले।
खेल खेलते नित्य निराले।।
🪴शुभमस्तु !
०३०९२०२१◆२.३० पतनम
मार्तण्डस्य।
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