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✍️ शब्दकार ©
🥃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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देश चलाते हम सभी, मिलकर दारूबाज।
बाँध रहीं निज शीश पर,सरकारें निज ताज।
यदि पीना हम छोड़ दें,चलें नहीं सरकार।
दारूबाजों का करें,बीमा हम बेज़ार।।
ठेके सब सरकार के, हम सब उनके संग।
जिस दिन पीना छोड़ दें, बदले उनका रंग।।
हम मरते पीकर सुरा, करके घर बरबाद।
भूखे घर वाले रहें, सरकारें आबाद।।
गिरते-पड़ते हम चलें,कँपते थर-थर पाँव।
ठेके से घर को गए,मिले नहीं घर गाँव।।
नाली - नाला रोड ही,मरने के सब थान।
औंधे मुँह ज्यों ही गिरे,निकले पल में जान।।
सभी पियक्कड़ जान लें, करनी है हड़ताल।
जब तक हो बीमा नहीं,पीना मत तत्काल।।
ठेके होंगे बंद जब, मिले नहीं राजस्व।
हाथी का चूहा बने,खच्चर होगा अश्व।।
कूकर जैसे हम मरें,पी-पी रोज़ शराब।
सरकारें पूँछें नहीं, मिटे हमारी आब।।
करें कमाई नित्य जो,लगा रहे हम दाँव।
बच्चे नंग-धड़ंग हैं,शहर देख लो गाँव।।
पत्नी पर साड़ी नहीं, नमक न घर में तेल।
घर में होती रार नित,दंपति हम बेमेल।।
नवाँ महीना चल रहा,पत्नी भी बेज़ार।
जनसंख्या है बढ़ रही, दारू का यह सार।।
पहले भी दो-चार हैं,जिन पर नहीं क़िताब।
फटी चड्डियाँ पहनते,पीता पिता शराब।।
नित पत्नी को पीटते,पीकर ख़ूब शराब।
सरकारें सुनती नहीं, कहतीं हमें ख़राब।।
बोतल या अद्धा मिले, 'शुभम' चाहिए छूट।
बीमा भी दस लाख का, चप्पल पाँव न बूट।।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०९.२०२१◆२.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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