बुधवार, 15 सितंबर 2021

राष्ट्रभाषा हिंदी 🌳 [ दोहा गीतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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हिंदी  के  हर   शब्द  में,भावों का   संसार।

अवगाहन  निधि में करें,मुक्ता मिलें  अपार।।


रोमन  लिपि के पंक से,होती है जब लिप्त,

हिंदी  भरती आह नित,बंद प्रगति के द्वार।।


माँ की बोली का किया,अगर नहीं सम्मान,

शेष  नहीं  संस्कार तव,हिंदी की हो  हार।


खांड़ खुरखरी लग रही,गुड़ बनिया का नीक,

बोल  फ़िरंगी    खींचते, अँग्रेज़ी   उपहार।


भाषा अपनी छोड़कर, हुआ इतर जो नेह,

माता तेरी है 'ममी', 'डैड' पिता का प्यार।


हिंदी    बहती    रक्त में, हिंदी माता     एक,

हिंदीमय  संसार  यह, यही कथ्य  का  सार।


'शुभम' न  भूला नर वही,लौटे संध्या  -काल,

पट खोलें निज चक्षु के,पा दायित्व सु-भार।


🪴 शुभमस्तु !


१५.०९.२०२१◆१०.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

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