सोमवार, 6 सितंबर 2021

कैसा मनुज - समाज ⛲⛲ [कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                       -1-

जोड़ा  जाए व्यक्ति को,बनता तभी  समाज।

बहुत  समाजों  से  बने, देश महान  सुराज।।

देश   महान  सुराज,  वही  है राष्ट्र     संपदा।

विघटन करे विनाश,नहीं है क्षण की निविदा।

'शुभं'सहज-सी बात,व्यक्ति ने टुकड़ा तोड़ा।

खंड -खंड हो देश,नहीं यदि सबको जोड़ा।।


                        -2-

मानव जीव-समाज का,एक अलग ही सार।

जंतु,कीट,खग यौनि पशु,सबसे प्रबल प्रचार।

सबसे  प्रबल  प्रचार, धरा  नभ नीर पसारा।

मानव  मूल्य  महान, इसी से मनुज उभारा।।

'शुभम'बिना अनमोल,मूल्य के बनता दानव।

जैसे  शूकर श्वान,  हो रहा अब  का मानव।।


                        -3-

मानव  के निज स्वार्थ से,टूटा मनुज समाज।

गया रसातल में मनुज,पतित हो रहा ताज।।

पतित हो रहा ताज, नहीं परहित की बातें।

शोषण  का नित साज, दिखाई  देतीं घातें।।

'शुभं' बची कब नाक,बुरा है मानव का रव।

जीना हुआ मुहाल,आज का रूखा मानव।।


                        -4-

ठगना ही अब योग्यता,शोषण जीवन -मूल।

कैसा  मनुज  समाज है,  देते इसको  तूल।।

देते  इसको   तूल, झोंपड़े   में भय    भारी।

महल चूसते खून, उजड़ती जन की क्यारी।।

'शुभम' चाँद में दाग,लगा कर चाहें  भगना।

लक्ष्य एक ही शेष, सभी विधि चाहें ठगना।।


                        -5-

वानर, चींटी  ,वन्य  का,देख संगठन आज।

सीख नहीं लेता मनुज,कैसा मनुज समाज!

कैसा मनुज   समाज,एकता खंडित   होती ।

नैतिकता चहुँ ओर,लाज से नयन  भिंगोती।।

'शुभम'मिटाया मान, पिता माता या  गुरुवर।

स्वयं बना अभिजात, बने क्यों चींटी वानर!!


🪴शुभमस्तु!

 

०६.०९.२०२१◆४.०० पतनम मार्तण्डस्य।


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