बुधवार, 22 सितंबर 2021

शब्द आधारित सृजन 🌸 [ दोहा ]


(चंपा, परिमल,मकरंद,कली,प्रभात)

             

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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चंपा  खिलती  बाग  में,लेकर रूप  सुगंध।

मोहक पीले पुष्प पर,अलि को है प्रतिबंध।।


चंपा राधा  रूपिणी, भ्रमर कृष्ण का भक्त।

इस  मर्यादा  हेतु ही,भ्रमर न हो अनुरक्त।।


परिमल तेरे रूप का, मादक विमल अपार।

 हम भँवरे  आए  हुए, पीने रस   की  धार।।


परिमल में विद्वान सब,चर्चा कर सुविचार।

श्रोता जन  को  मोहते,  करते  ज्ञान प्रसार।।


बेला की कलिका खिली,मीठा नव मकरंद।

परिमल से आकृष्ट हो,अलि झूमे स्वच्छंद।।


लोभी   मैं  मकरंद का,आया   तेरे  पास।

भौंरा  बोला  पुष्प से,सत्य, नहीं  परिहास।।


कली-कली खिलने लगी,हुई सुनहरी भोर।

पादप  पर   करने  लगे,सारे पक्षी    शोर।।


अभी कली  फूली नहीं, आकर्षण -आगार।

जब  बन  जाए  फूल तू,हमें हनेगा   मार।।


रूपसि  तेरे रूप का,मधु लावण्य  प्रभात।

फूले रूप - तड़ाग में,'शुभम'रूप जलजात।।


नव प्रभात कर भानु से,लिखता है शुभवार।

कहता नहीं उदास हो,'शुभम' न होगी हार।।


चंपा परिमल ले खड़ी, किंतु नहीं मकरंद।

ये प्रभात भी सोचता,कली खिली स्वच्छंद।


🪴शुभमस्तु !


२२.०९.२०२१◆७.०० आरोहणं मार्तण्डस्य।


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