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✍️ शब्दकार ©
🌅 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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तने हर तरफ़ भाले हैं।
हर दिशि कड़े कसाले हैं।।
सच बैठा है मौन धरे,
पड़े जीभ पर ताले हैं।
बीमारी का जोर बढ़ा,
हर घर में ही जाले हैं।
एक ओर है आग जली,
उधर कूप हैं नाले हैं।
करें शिकायत औरों से,
झूठे सपने पाले हैं।
बाहर से लगते साधू,
मन में गरम मसाले हैं।
एक टाँग पर खड़े 'शुभम',
भीतर काले - काले हैं।
🪴 शुभमस्तु !
२६.०९.२०२१◆४.४५ पतनम मार्तण्डस्य।
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