बुधवार, 1 सितंबर 2021

कच्छा' -पुराण (२) 🩳 [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार ©

🎍 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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'कच्छा'  एक  प्रतीक है,'हम तो हैं  ही  नंग।

सीधे  से  सब  मान  लो,वरना होंगे     तंग।।


'कच्छाधारी' के लिए,नहीं किसी   का  मान।

उसको ही सब पूजिए, वे ही अब  भगवान।।


'कच्छाधारी' के गले,डालो यदि  तुम  हार।

ओस तुम्हें देगा चटा, समझें शुभ उपकार।।


जनता को नंगा किया,तन से कपड़ा खींच।

कच्छा टाँगे बीच में, जनता-जल से सींच।।


'कच्छा' अंगुल चार का,करता बड़े  कमाल।

ख़ाकपाल लक्क्खी बना, होते नित्य धमाल।


'कच्छाधारी' के लिए,कक्षा का क्या मोल।

काला अक्षर भैंस-सा,शिक्षा नहीं अमोल।।


'कच्छा' या 'कच्छी' कहो,गुण हैं एक समान।

जो पहनाए तन वसन,उसको तनी कमान।।


सारे  तन पर  पोतकर,चिकना अंडी   तैल।

'कच्छा' जाता पकड़ से,दूर खोजता  गैल।।


'कच्छा'अच्छा ही भला,अगर न  लच्छादार ।

जुमले में है सार क्या, टपकाता  जो लार।।


बात जलेबी  - सी मधुर,किसे न भाती मीत।

बीमारी   मधुमेह की,करती है तन    रीत।।


देखो 'कच्छा'   मंच  पर, चीखे बीच बजार।

'शुभम'सोचकर मानना, सब दोहों का सार।।


🪴 शुभमस्तु !


०१.०९.२०२१◆११.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।

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