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✍️ शब्दकार ©
🪢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
'कच्छा' में जब से घुसा,बदला जीवन रूप।
कक्षा लगती खाज-सी,ज्यों बीहड़ का कूप।।
ज्यों बीहड़ का कूप, घुमाती जैसे लट्टू।
करी नौकरी चार, बना मैं लद्दू टट्टू।।
'शुभम'सर्व आंनद, प्राप्त दिन कटता अच्छा।
मिला राज का ताज,सभी से अच्छा 'कच्छा'।
-2-
'कच्छा' में सोना नहीं, है सोने की खान।
हीरा,मोती,लाल भी,उच्चासन का मान।।
उच्चासन का मान ,सात पीढ़ी का साधन।
क्यों करना है काम,स्वर्ण का सारा तन मन।
'शुभं'न कुछ आचार,करो सब होता अच्छा।
नैतिकता को त्याग,पहन ले चिकना 'कच्छा'।
-3-
'कच्छा'यदि धारण किया,करें आप कल्याण
बात देश की कर सदा,करना घर का त्राण।।
करना घर का त्राण,याद रख साला- साली।
भले गली के साफ़,नहीं हों नाला - नाली।।
'शुभं'सदा ही लाभ,लाभ ही अपना अच्छा।
जिसका सुंदर भाग्य,पहनता है वह 'कच्छा'।
-4-
'कच्छा'जिसने लगन से,तन पर पहना एक।
वही साधु,भगवान है,हर मानव से नेक।।
हर मानव से नेक, सदा है यौवन रहता।
बालाओं के साथ,नेह का झरना बहता।।
'शुभं'स्वर्ग का लोक,नित्य हर पल काअच्छा
जैसे भी हो धार, अंग पर मोहन 'कच्छा'।।
-5-
'कच्छा' रूपी फूल पर,तितली नित दो चार।
मँडराती इठला रहीं, नहीं मानती हार।।
नहीं मानती हार, सुघर बाला बलिहारी।
आती अजब बहार, नयन में चढ़े ख़ुमारी।।
'शुभं'न करना त्याग,बना रह भीतर अच्छा।
यही स्वर्ग का लोक,पहन ले अब तो कच्छा।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०९.२०२१◆३.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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