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✍️ शब्दकार ©
🧑✈️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रंग बैंगनी मोटी काया।
मैं सब्जी बैंगन कहलाया।।
गोल -मटोल कभी मैं लंबा।
होता कभी फूलकर तुम्बा।।
स्वाद बहुत लोगों को भाया।
मैं सब्जी बैंगन कहलाया।।
हरा मुकुट मेरे सिर ऊपर।
उगता बलुई दोमट भूपर।।
तन का भार घटाता आया।
मैं सब्जी बैंगन कहलाया।।
दाँत - दर्द में मैं हितकारी।
करता दूर उदर - बीमारी।।
कोलस्ट्रोल भी घटता पाया।
मैं सब्जी बैंगन कहलाया।।
कोई मुझको बे -गुण कहता।
बदनामी क्योंकर मैं सहता।।
सबके हित में मुझे बनाया।
मैं सब्जी बैंगन कहलाया।।
हरा श्वेत भी है रँग मेरा।
वात पित्त शामक मैं तेरा।।
हृदय रोग भी शीघ्र नसाया।
मैं सब्जी बैंगन कहलाया।।
मधुमेही को मैं शुभकारी।
याददाश्त की भी बीमारी।।
'शुभम' सदा शामक मैं पाया।
मैं सब्जी बैंगन कहलाया।।
🪴शुभमस्तु !
०१.०९.२०२१◆५.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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