सोमवार, 10 जनवरी 2022

वाणी कवि की गोमुखी 🦚 [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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वाणी   में अमृत बसा,वाणी में  विष  जान।

वाणी से  कोयल बने,कागा की   पहचान।।


वाणी  ही  सुखरूप  है , वाणी    परमानंद।

वाणी   ही   रसराज  है, वाणी रचती   छंद।।


खड़ा  कूप - मुंडेर पर,  करता नर   आलाप।

वाणी आती लौट कर,तू, तुम या स्वर आप।


वाणी  वीणाधारिणी, देतीं ध्वनि,स्वर, नाद।

सरस्वती माँ  भाषिका,वाचा, बोली,   वाद।।


कविता की शुचि गोमुखी, रसना के मधु बोल

वाणी ही स्रोतस्विनी, शब्द-शब्द अनमोल।।


वाणी   वार्तालाप   का, एकमात्र   आधार।

'शुभम' शब्द बोलें सदा, रहे न लेश विकार।।


वाणी को मत बाण का, कभी दीजिए   रूप।

'शुभम'सत्य प्रिय बोलिए,ज्यों शरदागम धूप।


वाणी  ही   सुरलोक  है, वाणी  कुंभीपाक।

ऊँची करती  नसिका, कटवाती भी  नाक।।


कोमल बोले कामिनी, नर के भारी  बोल।

वाणी तब ही बोलिए,हृदय- तराजू  तोल।।


विद्याधर  हो या परी, कितना सुंदर   रूप !

वाणी देती मान  नित,वाणी अमृत - कूप।।


वाणी से नर दनुज है,वाणी से वसु   मीत।

'शुभं'सत्य शुचि बोलिए,सदा-सदा हो जीत


🪴 शुभमस्तु !


०७.०१.२०२२◆८.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

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