मंगलवार, 25 जनवरी 2022

संविधान 🇮🇳🇮🇳 [ दोहा ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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संविधान  का  दिवस है, दो  हजार   बाईस।

बीस और छःजनवरी,नमन राष्ट्र को सीस।


संविधान से यदि चले,यह  निज भारत देश।

सदा  प्रगति उत्कर्ष हो,हो कोई  रँग  वेश।।


संविधान को तोड़कर, मनमानी का  खेल।

डुबा रहा है देश को,सब  कुछ है   बेमेल।।


संविधान निर्माण कर,दिया देश   को  मंत्र।

भीमराव  जी धन्य हैं, बना संगठित   तंत्र।।


संविधान   में  दोष का,  करते जो   संधान।

खंडित करना चाहते, सुगठित देश-वितान।।


संविधान  में  न्याय  का, सुंदरतम    संदेश।

जाति ,वर्ण के पक्ष का,नहीं सूक्ष्म  लवलेश।।


संविधान  भगवान है,   संविधान   सम्मान।

धनी और निर्धन सभी, सबका ही गुणगान।।


संविधान  को अति बुरा,कहता  है नर  मूढ़।

बुद्धि घास उसकी चरे,चलती पशुपथ कूढ़।।


संविधान  को सोच कर,किया गया  निर्माण।

बनी तराजू न्याय की,करे सभी  का  त्राण।।


संविधान  से  देश   जब , हो जाएगा   दूर।

मिट  जाएगा  देश   ये,   होगा चकनाचूर।।


संविधान  से  देश  ये,दुनिया में   सिरमौर।

'शुभम' सराहा जा रहा ,करके देखें   गौर।।


🪴शुभमस्तु !


२४.०१.२०२२◆१०.००

पतनम मार्तण्डस्य।

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