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✍️ शब्दकार ©
🙈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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क्यों किसी रंग में !
क्यों किसी संग में!!
झूमते हम सदा,
शब्द की तरंग में।
डुबकियाँ लगा नहा,
बह रही गंग में।
पंक - आकंठ जो,
जीत की चंग में।
डूब जाएँ और सब ,
मति मत - उमंग में।
नीतियाँ विलुप्त हैं,
सियासत - भंग में।
बोनटी - ध्वज सजा,
इस चुनाव - जंग में।
दशक अष्ट वसंत,
ज्वार अंग - अंग में।
सीख दें वे 'शुभम',
स्वयं बेढंग में।
🪴 शुभमस्तु !
३०.०१.२०२२◆५.१५
पतनम मार्तण्डस्य।
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