सोमवार, 31 जनवरी 2022

सजल 🪦


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समांत : 'आ'।

पदांत: है।

मात्राभार:14.

मात्रा पतन: शून्य।

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मनुज   जो   होता   भला  है

कर्म  शुभ  उसका   फला  है


मन,वचन शुचि  कर्म  जिसके

सुमनवत  महका    खिला  है


साँप    है  तो      नेवला   भी

काटने    उसको    चला    है


शूल  के   सँग    पुष्प  पाटल

खिलखिलाता  नित  पला है


उषा  रवि -  कर  ने   निरंतर

जगत के   तम   को  मला है


सिंधु   का   आधार    धरणी

गहनतम निधि   का  तला है


'शुभम'  जीवन  को   बनाना

सत्पुरुष  की  नित  कला है


🪴 शुभमस्तु !


३१.०१.२०२२◆१०.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

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