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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सूरजमुखी खिले हैं न्यारे ।
सुमन बहुत ही लगते प्यारे।।
भीने - भीने महक रहे हैं।
मधुमक्खी ने वचन कहे हैं ।।
'तुम कितनी मोहक लगते हो
मौन मूक बनकर सजते हो।।
'ताजा मधुरस हमें पिलाते।
छत्ते में हम शहद बनाते।।
'स्वागत तुम वसंत का करते ।
उड़ने की थकान को हरते।
'हिलो नहीं रस पी लेने दो।
हमको भी हित कर देने दो।
'जीवन है उपकारी अपना।
यही हमारे तप का तपना।
'तुम भी तो पर - उपकारी हो।
'शुभम'खिलेअपनी क्यारी हो।'
🪴शुभमस्तु !
२५.०१.२०२२◆१२.१५पतनम मार्तण्डस्य।
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