गुरुवार, 27 जनवरी 2022

खूँटा ♟️ [ मुक्तक ]

  

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 ✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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खूँटे       बदल      रहे      हैं,

झूठे      बदल        रहे     हैं,

सोए     थे       खाट      टूटी,

बिस्तर    बदल    रहे    हैं।1।


पगहा    तुड़ा      के     भागे,

सोए      पड़े       थे    जागे,

पीछे  न    मुड़    के    देखा,

भागे   वे       तेज     आगे।2।


बदला  जो     आज     खूँटा,

दीमक    लगा     है      टूटा,

थामा   है  आज    कस कर,

गोरा    है     या     कलूटा।3।


खूँटों  में    जड़      नहीं   है,

पत्तों     की     पतझड़ी    है,

उड़ते       गुबारों     में     वे,

थिरता  न अब   कहीं   है।4।


खूँटे    बिना     न      कुरसी,

आती     नहीं      है    तुरसी,

सेवा     न      होती      छुट्टा,  

चाहत   है    उच्च  कुरसी।5।


मौसम  में    उठा -  पटक है,

यह    जानता    घटक     है,

घूरे  के   दिन     भी    बदलें,

ऐसी  ये चटक -   मटक है।6।


खूँटों    की     खटपटी     है,

नट   हैं     कहीं     नटी    है,

निष्णात     हैं        कलाधर,

भगदड़  भी  अटपटी   है।7।


खूँटा  -   कला     के      बंदे,

फैलाते        अपने        फंदे,

सुबह    हो     कौन     खूँटा,

कब    जान    पाते    बंदे।8।


खूँटे     ही      खींच     लाते,

पंजे      में    भींच       जाते,

बदलाव      की     हवा    है,

पय - सार    सींच   भाते।9।


संस्कार       आज       खूँटा,

दरबार        ताज        खूँटा,

खूँटों     से     दूर       रहना ,

जन   का   दुलार   खूँटा।10।


🪴शुभमस्तु !


२५.०१.२०२२◆९.४५     पतनम मार्तण्डस्य।

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