गुरुवार, 27 जनवरी 2022

खूँटा -बदल पर्व है आया 🐐 [ बालगीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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खूँटा -  बदल  पर्व  है  आया।

बकरा जी के मन को भाया।।


आओ  बकरी , भैंसें   आओ।

खूँटा बदलो  मौज  मनाओ।।

गायों को  भी  बहुत  सुहाया।

खूँटा - बदल पर्व    है आया।।


बकरा जी ने   तोड़ा   पगहा।

कहता सबसे  अच्छा गदहा।।

पगहा  तोड़ उधर को  धाया।

खूँटा - बदल  पर्व  है आया।।


गधा   खेत, घूरे   पर   चरता।

नहीं किसी  से है वह डरता।।

मुक्त   कूदता  ही   वह पाया।

खूँटा - बदल  पर्व  है आया।।


घुने   हुए  खूँटों  को   छोड़ो।

हो मजबूत उसी   से जोड़ो।।

दे पाए जो ठंडी शीतल छाया।

खूँटा - बदल  पर्व  है आया।।


सबकी अपनी  कीमत   होती।

बुद्धिमान को  मिलते  मोती।।

खूँटों ,पगहों   की   है  माया।

खूँटा - बदल  पर्व  है आया।।


अवसर गया न फिर से आता।

जो चूका फिर -फिर पछताता।

क्यों न 'शुभम'तुमने ठुकराया।

खूँटा - बदल   पर्व  है  आया।।


🪴 शुभमस्तु !

२७.०१.२०२२◆५.३०

 पतनम मार्तण्डस्य।


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