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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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खूँटा - बदल पर्व है आया।
बकरा जी के मन को भाया।।
आओ बकरी , भैंसें आओ।
खूँटा बदलो मौज मनाओ।।
गायों को भी बहुत सुहाया।
खूँटा - बदल पर्व है आया।।
बकरा जी ने तोड़ा पगहा।
कहता सबसे अच्छा गदहा।।
पगहा तोड़ उधर को धाया।
खूँटा - बदल पर्व है आया।।
गधा खेत, घूरे पर चरता।
नहीं किसी से है वह डरता।।
मुक्त कूदता ही वह पाया।
खूँटा - बदल पर्व है आया।।
घुने हुए खूँटों को छोड़ो।
हो मजबूत उसी से जोड़ो।।
दे पाए जो ठंडी शीतल छाया।
खूँटा - बदल पर्व है आया।।
सबकी अपनी कीमत होती।
बुद्धिमान को मिलते मोती।।
खूँटों ,पगहों की है माया।
खूँटा - बदल पर्व है आया।।
अवसर गया न फिर से आता।
जो चूका फिर -फिर पछताता।
क्यों न 'शुभम'तुमने ठुकराया।
खूँटा - बदल पर्व है आया।।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०१.२०२२◆५.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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