शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

गीतिका 🦋

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🦋  डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

देश   खूँटों  में   सिमटकर  रह    गया।

आदमी   उनसे  लिपटकर  बह  गया।।


अस्मिता ,  गौरव    सभी  जाने    लगे,

गालियों   को मंत्र   कहकर  सह  गया।


खूँटियों    पर   टाँग     दी    हैं  नीतियाँ,

चापलूसी       से    चिपककर लह गया।


छोड़कर सत  का   कठिनतम राजपथ,

असत    में सपना सुलगकर कह गया।


पेड़   को    साया    सघन   ही  चाहिए,

वेदना  की  आग   पलकर  दह   गया।


मुक्त   होने    की   नहीं  चाहत  कभी,

खूँटा - पुराणों   उलझकर  ढह   गया। 


आज   खूँटा   -   पर्व    की वासंतिका,

गीतिका में 'शुभम' पतझर कह   गया।


🪴 शुभमस्तु !


२८.०१.२०२२◆१०.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...