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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
बढ़ता जाता काल का,पहिया नित अविराम।
संग समय के चल रही,सारी सृष्टि ललाम।।
सारी सृष्टि ललाम,तत्त्व पाँचों हैं गति में।
सदा सृजन संहार, जीवधारी रत रति में।।
'शुभम' नई प्रति भोर,दृश्य सबके मन भाता।
सकल चराचर लोक,रश्मिवत बढ़ता जाता।।
-2-
आगत का स्वागत करें,अभिनंदन शत बार।
विदा हुआ इक्कीस जो,उसका है आभार।
उसका है आभार,अनुज उसका है आया।
वर्ष नवल बाईस,विश्व जनगण को भाया।।
'शुभं'मिले आशीष,भाल शुचि अपना है नत
मात पिता ही ईश,सुहृद हो अपना आगत।।
-3-
मेरे भारत देश की , धरती पूज्य महान।
फसलों का सोना उगे,कृषि किसान की शान
कृषि किसान की शान,फूल फल अन्न उगाए
दुग्ध ,शाक भंडार,सभी जन जन को भाए।।
'शुभम' इत्र का खेल, खेलते लोग घनेरे।
चमत्कार का देश , सपेरे भी हैं मेरे।।
-4-
आतीं- जातीं वर्ष में ,ऋतुएँ षट- षट बार।
पावस नव मधुमास की,पावन विरुद बहार।
पावन विरुद बहार,ग्रीष्म हेमंत उजाला।
शरद शिशिर का शीत, करें तन मन मतवाला
'शुभम' बरसते मेघ, फूल - पत्ती मदमातीं।
चमकें सूरज चाँद,चाँदनी खिल खिल आतीं।
-5-
बीमारी भेड़ाचरण, करें देश में योग।
पीछे चलना धर्म है,यही देश का रोग।।
यही देश का रोग, बुद्धि का विदा दिवाला।
खाता सूखी घास, सोच का मोख निकाला।।
'शुभम' देश की साख, मारते भेड़ाचारी।
हुई सियासत रूढ़, बढ़ रही नित बीमारी।।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०१.२०२२◆११.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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