शनिवार, 1 जनवरी 2022

सोने की चिड़िया 🏕️ [ दोहा -गीतिका ]

  

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अब तो यह लगने लगा,सच होगी वह  बात,

चिड़िया सोने की यहाँ, उड़ती थी दिन  रात।


चिड़िया उड़ पहुँची कहाँ, जान न पाया नीड़,

 तिनके बिखरे  रह गए, मिली देश को घात।


चिड़िया उड़ते ही यहाँ, चिड़ियाघर  निर्माण,

हुआ स्वर्ण की शाख पर,दे निर्धन को  मात।


भूतल में  चिड़ियाँ  छिपीं,देख रहा  है  देश,

खोद  मशीनें   ले  गईं, पड़ी पेट   पर   लात।


पालित चिड़ियाँ स्वर्ण की,बाँट रहीं  उपहार,

पालक  पीतल तोलते,हुआ ग्राफ  का  पात।


रोटी, सब्जी, दाल से ,भरते  थे   जो   पेट,

कारा में क्या खा रहे,हुआ जगत  को  ज्ञात।


'शुभम' एक से एक बढ़,स्वर्ण-कीर इक्कीस,

मात्र पूँछ  की  बात है, छिपी भूमि  बारात।


🪴 शुभमस्तु !


०१.०१.२०२२◆८.१५ 

पतनम मार्तण्डस्य।

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