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✍️ शब्दकार ©
👮♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बचपन ही बचपन को ढोये।
देख दृश्य मन मेरा रोये।।
बँधा पीठ शिशु अपना भाई।
चारे का गट्ठर ले आई।।
सात वर्ष की छोटी बाला।
नहीं जा सकी पढ़ने शाला।।
दायित्वों का बोझा भारी।
ढोती तन पर वह बेचारी।।
देख दशा मानवता रोती।
बचपन को बोझों में खोती।।
घर का हाल बताएँ कैसे।
बालक हैं भारत में ऐसे।।
जो विकास का खाते चारा।
दायित्वों से करें किनारा।।
नेता ये भारत के झूठे।
व्यर्थ तानते ऊँचे मूठे।।
जो समाज सेवी कहलाते।
बच -बचकर ऐसों से जाते।
क्यों ऊँचा करते हो झंडा।
'शुभम' झूठ सेवी का फंडा।।
🪴 शुभमस्तु !
२९.०१.२०२२◆११.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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