[अँगीठी,आँच, कुनकुन,धूप,कुहासा]
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✍️ शब्दकार ©
🌅 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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🖋️ सब में एक🖋️
गया अँगीठी- काल अब,करते गैस प्रयोग।
मानव-तन में लग रहे, तरह-तरह के रोग।।
घर की बड़ी मुँडेर पर,हुई अँगीठी लाल।
धूम उड़ाती वायु में ,करती हुई धमाल।।
लगी आँच की तन तपन,शीत हुआ कमजोर
दादी आई पास में, हुई सुनहरी भोर।।
अगियाने की आँच का,उठा रहे आनंद।
बालक, नारी ,नर सभी, गा चौपाई छंद।।
कुनकुन जल ही पीजिए,भोजन के उपरांत।
पाचन होगा उचित ही,जठरानल हो शांत।।
कुनकुन तेरी देह का,परस मिला जब मीत।
पोत-पोर गायन करे,काम -छंद के गीत।।
देख कुमारी धूप का, रूप मनोहर कांत।
पहुँचा छूने को 'शुभम', हुई रजाई क्लांत।।
प्रिये तुम्हारे रूप की,सुखद कुनकुनी धूप।
आलिंगन में बाँधती,ढलता तव अनुरूप।।
सघन कुहासा दुग्ध-सा ,प्रसरित चारों ओर।
देखी घर के द्वार पर, शीतल भोली भोर।।
जमा कुहासा घास पर,पादप -दल मुक्ताभ।
विनत सुमन खिलने लगे,हुआ सचेतन गाभ।
🖋️ एक में सब 🖋️
दग्ध अँगीठी आँच को,
देख भोर की धूप।
श्वेत कुहासा ओढ़कर,
आई कुनकुन रूप।।
🪴 शुभमस्तु !
०५.०१.२०२२◆६.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।
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