गुरुवार, 6 जनवरी 2022

आसान है! 🙈 [ अतुकांतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🙈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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भेड़ बनना 

आसान है,

शेर बनना नहीं,

शेर यों ही 

वनराज नहीं,

इसीलिए

हर एक शेर नहीं।


कुछ भी नहीं विचारना

बस किसी का 

अंधा अनुगमन करना,

रेवड़ में विचरना,

वही है उसका धर्म,

किया जाने वाला कर्म,

भेड़ - धर्म है,

भेड़ाचरण का मर्म है।


भेड़ का क्या है!

न अपना दिमाग़,

न अपनी सोच,

न अपने कान,

आगे चलने वाले की

ऊँची शान,

उसी में बसते हैं प्राण,

रहते हुए म्रियमाण।


आज भेड़ ही 'भक्त' है,

भीड़ का रेवड़ है,

इनकी दृष्टि में 

ये देश नहीं बेहड़ है,

जहाँ जनता नहीं

खेहर  है,

रौंद रहे भेड़ों के रेवड़।


बहुमत की तलाश है,

सत्य की नहीं,

भले ही वह अंधों का हो,

अविवेकी बंदों का हो,

आत्मघाती छल-छंदों का हो,

सत्य की चिंता ही किसे है!


बस आसान है,

भेड़ बन जाना,

हर्रा लगे न फ़िटकरी,

रँग चोखा ही आ जाना!

चलते रहें !चलते रहें!!

चरैवेति ! चरैवेति !!

भले ही भाड़ हो!

कुछ करने के लिए

आड़ का पहाड़ हो।

भेड़ का यही

 'शुभम' पंथ है,

यही आसान है,

मेरा देश महान है।


🪴 शुभमस्तु !


०६.०१.२०२२◆७.००पतनम मार्तण्डस्य।


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