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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
हमको अब लगने लगा,बना बुढ़ापा मीत।
भरा -भरा खाली लगे,गया गात यह रीत।।
गया गात यह रीत, प्रौढ़ता बीती सारी।
रहा न यौवन शेष,लगीं तन में बीमारी।।
'शुभम'फूलती साँस,उजाला समझे तम को।
चौथेपन का पाँव,निकल आया है हमको।।
-2-
पहले तन में शक्ति थी,यौवन जिसका नाम।
तन की ताकत घट रही,जीवन की है शाम।।
जीवन की है शाम, शेष हैं अनुभव सारे।
सुनते युवा न बात, सुता या पुत्र हमारे।।
'शुभम' दे रहे सीख, मार नहले पर दहले।
बदला है युग आज,वही अब हमसे पहले।।
-3-
देकर सौगातें सहस, गेह बनाई देह।
बचपन,यौवन , प्रौढ़ता, नर- जीवन के मेह।।
नर - जीवन के मेह,वसंती ऋतु सरसाई।
जुड़ा काम से नेह,करी करनी मनभाई।।
'शुभम' खिले जब फूल,सुगंधें पावन लेकर।
दिए नहीं कटु शूल,जिया अपने को देकर।।
-4-
मेरे तन में वेदना ,सता रही दिन - रात।
कभी पीर घुटने करें,कभी कमर में वात।।
कभी कमर में वात,टीसती दिन भर ऐसे।
चुभते हैं बहु शूल,धतूरे के फल जैसे।।
'शुभम' बुढ़ापा मीत, दे रहा कष्ट घनेरे।
भूल गया सब ज्ञान,द्वार पर बैठा मेरे।।
-5-
कविता माँ की गोद में, विस्मृत वृद्धालाप।
वही पिता ,माता वही, वही ईश का जाप।।
वही ईश का जाप ,साठ वर्षों से मेरा।
उर का वहीं निवास ,सबल बाँहों ने घेरा।।
'शुभं'काव्य मम सोम,काव्य ही मेरा सविता
प्रसरित भव्य प्रकाश, सँजीवनि हिंदी कविता
🪴 शुभमस्तु !
२९.०१.२०२२◆२.४५ पतनम मार्तण्डस्य।
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