शनिवार, 22 जनवरी 2022

सघन कोहरा छाया 🌼 [ दोहा गीतिका ]


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

  सघन   कोहरा छागया  , दिशा-दिशा  में   शीत।

छिपे  कीर  निज  नीड़ में, जीव-जंतु  भयभीत।


चादर  ओढ़े    दूध - सी, छिपे हुए   हैं   भानु,

निष्प्रभ   चंदा- चाँदनी, नहीं गा   रहे   गीत।


पल्लव-पल्लव ओस के, चमके  मुक्ता चारु,

जेठ  पराजित हो गया,पूस-माघ  की  जीत।


छुआ  न जाए  देह  को,पोर-पोर  हिम  सेत,

कैसे हो  अभिसार अब,रूठ गया  है   मीत।


अवगुंठन   अपना  हटा,नहिं चाहती    नारि,

आलिंगन   कैसे करें, गए दिवस   वे   बीत।


पाटल - दल  भीगे हुए,स्वागत को   तैयार,

उत्कंठा    ऐसी  जगी,  भाव नहीं   विपरीत।


'शुभम'  कामना  आग  - सी,दहकाती है  देह,

झरते उर नव स्रोत के,निर्झर नित नवनीत।।


🪴 शुभमस्तु !


२१.०१.२०२२◆११.०० आरोहणं मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...