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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
लगाकर मुखौटा चले हैं रिझाने,
सभी साधते हैं उरों पर निशाने,
गली - गाँव में मतमंगे चले हैं,
भोली - सी जनता छलों से लुभाने।
-2-
चेहरे पर चेहरा नकली चढ़ाए,
कदम आश्वासनों के आगे बढ़ाए,
सभी जानते ये मुखौटे हैं सारे,
घूमते चाम नेता तन पर मढ़ाए।
-3-
भाषा भी बदली बदली है बोली,
लिए साथ घूमें चमचों की टोली,
कपट का मुखौटा चढ़ा हर वदन पर,
चंदन सजाया चमकती है रोली।
-4-
वादों , विचारों में सच कुछ नहीं है,
मुखौटों के नीचे कटुता बही है,
इत्र की इन सुगंधों के नीचे सड़न है,
'शुभम ' ने सचाई की कहानी कही है।
-5-
मुखौटों के मेले सजने लगे हैं ,
सलिलहीन बादल गरजने लगे हैं,
झूठ की ये झड़ी भिगोती यों 'शुभम',
मतमंगे अपने न होते सगे हैं।
🪴 शुभमस्तु !
०४.०१.२०२२◆ ८.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।
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