मंगलवार, 4 जनवरी 2022

मुखौटा 🤡 [ मुक्तक ]


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

लगाकर     मुखौटा  चले  हैं      रिझाने,

सभी    साधते    हैं   उरों    पर  निशाने,

गली -   गाँव    में    मतमंगे  चले     हैं,

भोली - सी  जनता  छलों    से   लुभाने।


                        -2-

चेहरे    पर       चेहरा   नकली   चढ़ाए,

कदम   आश्वासनों    के   आगे   बढ़ाए,

सभी    जानते     ये मुखौटे  हैं   सारे,

घूमते    चाम    नेता   तन   पर   मढ़ाए।


                        -3-

भाषा    भी    बदली  बदली है    बोली,

लिए    साथ   घूमें  चमचों  की   टोली,

कपट   का   मुखौटा चढ़ा हर वदन पर,

चंदन    सजाया   चमकती   है   रोली।


                        -4-

वादों , विचारों   में  सच कुछ नहीं   है,

मुखौटों   के  नीचे   कटुता बही    है,

इत्र   की  इन सुगंधों  के नीचे सड़न है,

'शुभम ' ने  सचाई की कहानी कही  है।


                        -5-

मुखौटों   के     मेले   सजने लगे    हैं ,

सलिलहीन   बादल    गरजने लगे   हैं,

झूठ  की ये  झड़ी भिगोती यों 'शुभम',

मतमंगे    अपने     न  होते सगे     हैं।


🪴 शुभमस्तु !


०४.०१.२०२२◆ ८.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।

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