रविवार, 30 जनवरी 2022

जीवन की रेल 🚉 [ दोहा गीतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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दिन से दिन ऐसे जुड़े,ज्यों डिब्बों की  रेल।

दिन होते सब मेल ही,नहीं कभी  फीमेल।।


दिन  के  पीछे  रात है, दोनों का नित  संग, 

बिना दिवस के रात क्यों,यही नित्य का खेल


एक-एक कर बीतते,पल -पल दिन या रात,

बूँद -  बूँद  कर  रीतता, भरा घड़े   में  तेल।


रवि-कपोल पर हाथ रख,उषा जगाती नित्य,

हर्षित हो रवि जागता, ले किरणों  का भेल।


मौन बना  चलता रहे, प्रातः से चल   शाम,

चमके ऊपर शून्य में,दिया तमस को  ठेल।


पल -पल का उपयोग कर,करना है कर्तव्य,

वृथा बिताना ही नहीं, क्यों करता अवहेल।


बचपन यौवन प्रौढ़ता, जीवन के   बहु रंग,

'शुभम'प्रीति के भाव से,बनता जीवन गेल।


*भेल= बेड़ा, समूह।

*गेल = सुंदर स्त्री। (भाव: नारीवत सुंदर )


🪴शुभमस्तु !


३०.०१.२०२२◆६.३०आरोहणं मार्तण्डस्य।

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