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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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भेड़ाचरण
रिसता हुआ व्रण
प्रति क्षण - क्षण,
भविष्य की धूमिल किरण
किया है
बहु संख्य ने वरण।
भेड़ में कोई विचार नहीं,
सोच का आचार नहीं,
चरैवेति - चरैवेति पीछे - पीछे
न देखें ऊपर नहीं नीचे,
चर्म - चक्षुओं को मींचे,
भले हो पतन
किसी कूप में,
या भाड़ में ही गिरें,
ऊपर उठने की
सोच ही गुनाह !
सदैव चाहिए
किसी चूषक की छाँह,
वट वृक्ष की पनाह!
वाह रे आत्ममुग्ध इंसान!
तुझे लाभ ही लाभ
न कोई हानि!
हर्रा लगे न फिटकरी,
चरण चुम्बन में
गोटी फिट करी,
जय जय नेताजी!
हरी - हरी !
माल ही माल
तरी ही तरी!
उनको मेवा मिसरी
तुम्हें काजू किसमिस गिरी!
रे भ्रमित भेड़ाचारी !
कभी लाल हरी
कभी केसरिया भी सँवारी,
तुम नेता के पीछे !
जनता तुम्हारे पीछे,
हरे - हरे बागीचे!
चमचा - जल से
बहुविधि सींचे,
तुमसे सब नीचे।
खाने से बेहतर है
मक्खन का लगाना,
नीम को बबूल
औऱ उनके कहे पर
बबूल को नीम बतलाना,
छल -प्रपंचों से
हर आम को बरगलाना,
भ्रमित करवाना,
रावणीय अट्टहास
करना करवाना,
एक्ट जाल में
मछली फँसाना,
तिलक त्रिपुंड लगा
धर्म -आस्था जताना!
नया नहीं
छल प्रपंच है पुराना।
हथकंडे
रंग - रंग के बिरंगे,
बनी हुईं धन
स्वर्ण की सुरंगें,
तिजोरी की
जरूरत ही नहीं,
कक्षों में
बोरियाँ भरी-भरी!
भैंस समेत खोया
करने की पूरी छूट!
कहता रहे कोई
जनता और करों की लूट!
'शुभम' तुमसे ,
तुम्हारे जैसों से,
ये इंडिया महान है,
तुम में ही तो बसते
नेता जी के प्राण हैं।
🏕️ शुभमस्तु !
०२०१२०२२◆४.३० पतनम
मार्तण्डस्य।
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