रविवार, 2 जनवरी 2022

भेड़ाचरण 🐏🐑 [ अतुकांतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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  भेड़ाचरण

रिसता हुआ व्रण

प्रति क्षण - क्षण,

 भविष्य की धूमिल किरण

किया है 

बहु संख्य  ने वरण।


भेड़ में कोई विचार नहीं,

सोच का आचार नहीं,

चरैवेति - चरैवेति  पीछे - पीछे 

न देखें ऊपर नहीं नीचे,

चर्म - चक्षुओं को मींचे,

भले हो पतन

 किसी  कूप  में,

या भाड़ में ही गिरें,

ऊपर उठने की

 सोच  ही गुनाह !

सदैव चाहिए 

किसी चूषक की छाँह,

वट वृक्ष की पनाह! 

वाह रे आत्ममुग्ध इंसान!

तुझे लाभ ही लाभ 

न कोई हानि! 


हर्रा लगे न फिटकरी,

चरण चुम्बन में 

गोटी फिट करी,

जय जय नेताजी!

हरी - हरी !

माल ही माल 

तरी  ही तरी!

उनको मेवा मिसरी

तुम्हें काजू किसमिस गिरी!


रे भ्रमित भेड़ाचारी !

कभी लाल हरी

कभी केसरिया भी सँवारी,

तुम नेता के पीछे !

जनता तुम्हारे पीछे,

हरे - हरे बागीचे!

चमचा - जल से 

बहुविधि सींचे,

तुमसे सब नीचे।


खाने से बेहतर है

मक्खन का लगाना,

नीम को बबूल 

औऱ उनके कहे पर

बबूल को नीम बतलाना,

छल -प्रपंचों से

हर आम को बरगलाना,

 भ्रमित करवाना,

रावणीय अट्टहास

करना करवाना,

एक्ट जाल में 

मछली फँसाना,

तिलक त्रिपुंड लगा

धर्म -आस्था जताना!

नया नहीं

छल प्रपंच है पुराना।


हथकंडे 

रंग - रंग के बिरंगे,

बनी हुईं धन 

स्वर्ण की सुरंगें,

तिजोरी की

 जरूरत ही नहीं,

कक्षों में 

बोरियाँ भरी-भरी!

भैंस समेत खोया 

करने की पूरी छूट!

कहता रहे कोई

जनता और करों की लूट!

'शुभम' तुमसे ,

तुम्हारे  जैसों से,

ये इंडिया महान है,

तुम में  ही तो बसते

नेता जी के प्राण हैं।


🏕️ शुभमस्तु !


०२०१२०२२◆४.३० पतनम

मार्तण्डस्य।

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