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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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श्रमणा एक भीलनी नारी।
रामभक्ति में डूबी सारी।।
जन्मी शबर पिता के आलय।
नहीं उसे वन में कोई भय।।
गुरु मतंग से शिक्षा पाई।
होने वाली बात बताई।।
राम-लखन कुटिया तव आएँ।
तब तेरे संकट मिट जाएँ।।
रामभक्ति में शबरी खोई।
कठिन प्रतीक्षा कर-कर रोई।।
यौवन गया बुढ़ापा छाया।
एक दिवस वह शुभ क्षणआया।
डलिया में बेरों को रखती।
पहले ही वह उनको चखती।
आई घड़ी कुमार पधारे।
कष्ट मिटे शबरी के सारे।।
प्रेम- भाव से भीगी उर में।
बैठी शबरी भू- सुरपुर में।।
जूठे बेर खिलाती जाती।
मन ही मन भारी हरषाती।।
नयनों में प्रेमाश्रु भरे थे।
पाँव पखारे भाव खरे थे।।
'शुभम'भक्ति शबरी-सी कर ले।
भव- सागर के पार उतर ले।।
🪴 शुभमस्तु !
१८.०१.२०२२◆११.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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