बुधवार, 19 जनवरी 2022

शबरी की भक्ति 🧕🏻 [ चौपाई ]

  

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

श्रमणा  एक   भीलनी  नारी।

रामभक्ति   में   डूबी   सारी।।

जन्मी शबर पिता के आलय।

नहीं उसे वन  में  कोई  भय।।


गुरु  मतंग   से   शिक्षा   पाई।

होने   वाली   बात     बताई।।

राम-लखन कुटिया तव आएँ।

तब  तेरे  संकट   मिट  जाएँ।।


रामभक्ति   में   शबरी   खोई।

कठिन  प्रतीक्षा कर-कर रोई।।

यौवन  गया   बुढ़ापा   छाया।

एक दिवस वह शुभ क्षणआया।


डलिया  में  बेरों  को  रखती।

पहले ही  वह उनको चखती।

आई   घड़ी    कुमार   पधारे।

कष्ट  मिटे  शबरी   के  सारे।।


प्रेम- भाव   से  भीगी  उर में।

बैठी  शबरी  भू- सुरपुर   में।।

जूठे   बेर    खिलाती   जाती।

मन ही मन  भारी  हरषाती।।


नयनों  में   प्रेमाश्रु    भरे   थे।

पाँव पखारे   भाव   खरे  थे।।

'शुभम'भक्ति शबरी-सी कर ले।

भव- सागर के   पार   उतर ले।।


🪴 शुभमस्तु !


१८.०१.२०२२◆११.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...