शनिवार, 22 जनवरी 2022

अतीत 🧡 [अतुकांतिका]

 

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✍️ शब्दकार ©

🧡 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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शेष नहीं हो

जिसकी तीत,

हो गया हो 

जो पूरी तरह रिक्त,

वही तो है 

हे मानव तेरा अतीत।


यह अतीत ही 

कभी था जब

सतीत ,

शुष्कता नहीं थी,

उष्णता भी नहीं थी,

तीत ही तीत थी,

तभी तो उर में

विद्यमान प्रीति थी।


सतीतता में

होता है नव अंकुरण,

स्फुरण ,

संचरण,

क्योंकि वहाँ नमी है,

जो है अपरिहार्य

नहीं उसकी 

कहीं भी तृण भर

कमी है।


फिर भी आज की अपेक्षा

बीता हुआ कल

सुख देता है,

बीत जाने पर

रीत जाने पर

रिक्त पात्र भी

मधुर स्मरण देता है।


यह अतीत ही

कभी वर्तमान था,

मेरी तेरी पहचान था,

कैसे किया

 जा सकता है

विस्मृत,

उसका तो 

प्रत्येक आयाम है

 अति विस्तृत,

उसी ने किया है

सदा ही तुम्हें उपकृत,

वही तो है 

जीवन का ऋत,

उसी का  वरदान है

'शुभम' है जीवन का सत।


*तीत =नमी ,आर्द्रता।


🪴 शुभमस्तु !



२१.०१.२०२२◆८.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

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